तू उड़... पर प्यारे इतना भी ना उड़ !!!
औरंगाबाद में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक होनेवाली थी आठ साल के लंबे
अंतराल के बाद यह बैठक होनेवाली थी. सब खुश थे, पर मेरी जुबान
पर न जाने क्यों दुष्यंतकुमार की शेर की लाइनें बार-बार आ रही थीं - ‘आज
सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख / घर अंधेरा देख तू, आकाश के तारे न
देख’. तब न सही मगर मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उनका अर्थ साफ हो गया. शहद
की चाशनी में लिपटे ‘पैकेज’ शब्द की बजाय ‘कालबद्ध
कार्यक्रम’ और शिक्षकों पर चले डंडे, जेल, आंसू गैस के
आंसू कथनी और करनी का अंतर साफ कर गए.
औरंगाबाद में मंत्रिमंडल की जब-जब बैठक होती है तब तब कुछ न कुछ ऐसा
होता है जो सबको चौंका देता है. इस बार मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पचास हजार
करोड़ का कालबद्ध कार्यक्रम घोषित कर मराठवाड़ा के प्रति अपनी उदारता का ढिंढोरा पीट
दिया. १९८१ में मुख्यमंत्री बैरिस्टर ए.आर. अंतुले के ३५ सूत्री कालबद्ध कार्यक्रम
को ‘छप्परफाड’ वादे कहा गया था. फडणवीस की इस घोषणा को दूसरी
छप्परफाड घोषणा कहा जा सकता है. २००८ में पूर्व दिवंगत मुख्यमंत्री विलासराव
देशमुख ने तो कमाल ही कर दिया था. उन्होंने पिछले पैकेज की कॉपी ही नए सिरे से पेश
कर दी थी. उसकी घोषणा के वक्त पत्रकार परिषद में इस बात का भंडाफोड होते ही
मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्रिमंडल अवाक रह गया था. खैर, जनाब फडणवीस ने
इस बात का संकेत तो दिया है कि भई, कार्यक्रम के लिए हमारे पास पैसा तो
हैं पर खर्च हम चार सालों में करेंगे, तब तक हमारे प्रति आप वफादार बने रहे.
वर्ष २०१९ के चुनाव तक फिलहाल अमल की गारंटी नहीं दे सकते. आम तौर पर प्रशासकीय
मान्यता की कागजी कार्यवाही पूरी कर मुख्यमंत्री के समक्ष पूर्वपीठिका पेश करने के
पश्चात मंंत्रिमंडल में विषय चर्चा के लिए आता है. पचास हजार करोड़ की मंजूरी में न
जाने कितना टन कागज काला होता. यहां तो सचिव ही नदारद थे. अगर इसे आदेश कहा जाए तो
बजट में प्रावधान ही नहीं तो अमल क्यों कर होता? सरकार पर पहले
से ही साडेतीन हजार करोड़ के कर्ज का बोझ हैं. इसके बावजूद पिछड़े मराठवाड़ा के द्वार
खोलने वाले दयानतदार मुख्यमंत्री जनसाधारण की वाहवाही के हकदार है. मौजूदा दौर में
जनसाधारण भी मानने लगा है कि विकास यानी कुछ करोड़ का पूंâकना. एक
समीकरण-सा बन गया है कि विकास मानी खर्च और खर्च मानी विकास. करोड़ों के इस आंकडों
के खेल को ही विकास की प्रक्रिया कहा जाता है. अपनी तिजोरी के पैसे को छुए बिना
उन्होंने गेंद सीधे बीमा वंâपनी के पाले में डाल दी. कुल जमा बारह
लाख हेक्टेयर खरीफ फसलें इस बार तबाह हुई हैं. ७८ फीसदी किसानों ने बीमा कराया है.
२२ फीसदी किसानों के बारे में बाद में सोचा जाएगा. वास्तव में किसानों के हाथ कुछ
नहीं आया है. उस बेचारे के पीठ पर दिलासे की थपकी तक नहीं आयी है.
कृष्णा घाटी का २१ टीएमसी पानी मराठवाड़ा को देने का वादा किया गया
है. इसके लिए ४८०० करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. यह वादा तो बरसों पुराना
हैं. लेकिन इसके लिए बजट में प्रावधान मुख्यमंत्री ने इच्छाशक्ति दिखाई है यह
सराहनीय है. कृष्णा जल टंटा प्राधिकरण ने केवल ७ टीएमसी पानी देने का पैâसला
किया है. चूंकि उस पर पांच हजार करोड़ रुपए खर्च होता था, पैâसले
पर अमल ही नहीं हो पाया. राज्य के लिए प्रावधानित सात-आठ हजार करोड रुपए से यह
राशि मिलना दूभर है. लिहाजा यह नई घोषणा क्या मायने रखती है? सरकार
इसके लिए बांड जारी करने का इरादा रखती है. कृष्णा घाटी निगम ने इसके पूर्व जारी
किए बांड को जनता का भारी समर्थन मिला. तथापि उसके भुगतान में सरकार ने जो कोताही
बरती है, उसे देखते हुए नए सिरे से कौन अपनी गर्दन सरकार के पंजे में पंâसाना
चाहेगा.
इन सब में ज्यादा किरकिरी परतूर के मंत्री बबनराव लोणीकर की हुई है.
कुछ दिन पहले अपने एक मंत्री मुनगुंटीवार की घोषणा के सहारे मराठवाड़ा को नलों से
पानी देने के लिए १५०० करोड़ रुपए की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा उन्होेंने कर
डाली. इधर मुख्यमंत्री ने यह कहकर घोषणा की हवा निकाल दी कि योजना का अभी खाका ही
नहीं बना है. मजे की बात यह कि वैजापुर, गंगापुर तहसील के नांदुर-मधमेश्वर
शीघ्रगति नहर तथा लोअर दूधना परियोजना के लिए पहले ही प्रधानमंत्री सिंचायी योजना से ढेर सारी राशि मंजूर हुई है.
उसकी बहती गंगा में राज्य सरकार ने हाथ धो कर दोनों परियोजनाओं को तुरतपुâरत
सहायता कर दी. औरंगाबाद के कैन्सर अस्पताल
को राज्य का दर्जा देने तथा कुछ स्थानों की पूर्ति से वेंâद्र से १२० करोड़
रुपए की सहायता मिलेगी. प्रधानमंत्री आवास योजना से मराठवाड़ा में एक लाख आवास बनाए
जाएंगे. उसमें ‘शबरी’ और ‘रमाई’ योजना
के तहत २२ हजार आवासों का निर्माण होगा. औरंगाबाद शहर को स्मार्ट बनने के लिए एक
हजार करोड़ रुपए मिलेंगे. सड़कों के लिए ३० हजार करोड रुपए वेंâद्र
सरकार देगी. केंद्र में
भाजपा की सरकार है. चुनांचे मुख्यमंत्री ने वेंâद्र की योजना के
बहाने करोड़ो की घोषणा की है. जलसंवर्धन आयुक्तालय, औरंगाबाद में
नया प्रशासकीय भवन, मिटमिटा के सफारी पार्वâ के लिए जगह,
लातूर
में क्रीड़ा संकुल, टेक्सटाईल पार्क आदि अहम फैसलें भी हुए.
इसके लिए संभागीय आयुक्त उमाकांत दांगट धन्यवाद के पात्र है. उनके द्वारा पेश अनेक
फैसलों को हरी झंडी मिली हैं. तथापि,
औरंगाबाद
प्रदेश महानगर विकास प्राधिकरण तथा संतपीठ के बारे में विचार नहीं हुआ है.
प्राधिकरण की घोषणा होने तक औरंगाबादवासियों को मेट्रो की सवारी नसीब नहीं होगी.
इस बैठक का सबसे दुखद पहलू यह है कि किसानों के दुखों को सिरे से
नजरअंदाज कर दिया गया. २०१२ से निरंतर सूखा और गीले अकाल की मार ने किसांनों की
कमर तोड़ दी है. बीड़, उस्मानाबाद, लातूर को करारा
झटका लगा है. रही सही कसर इस बार घनघोर बारिश ने उसकी उम्मीदों पर पानी पेâर
कर पूरी कर दी है. अब इस बारे में चार साल कुछ नहीं हो पाएगा. केवल समीक्षा की
मरहमपट्टी का नाटक होगा.
इस मंत्रिमंडल की बैठक को राजनीति की बिसात पर शह और मात की नजर से
भी देखा जा रहा है. अब तक मराठवाड़ा के चार नेताओं ने मुख्यमंत्री पद विभूषित किया
है. तथापि मराठवाड़ा के बुनियादी सवाल जस-तस हैं. दल चाहे कोई भी हो पक्ष या विपक्ष
बुनियादी मसलें हमेशा राजनीतिक दलों के लिए जनता को भरमाने की पूंजी बनकर रह गए
हैं. राज्य के साथ साथ मराठवाड़ा में सामाजिक आंदोलनों की धार तेज है. इसकी धार कुंद करने की नजर से इस कालबद्ध कार्यक्रम
को देखा जा सकता है. कालबद्ध कार्यक्रमों में आवंâडों का खेल
आगामी सियासी चालों की नजर से देखा जा रहा है. सरकार खास कर मुख्यमंत्री देवेंद्र
फडणवीस कहते है कि विकास के मसलों मे सियासी मसलों की घालमेल नही होनी चाहिए,
लेकिन
वह खुद ही इस तरह का खेल करते नजर आते है.
नांदेड-लातूर, बीड़-परभणी तथा उस्मानाबाद के बारे में
सियासी पक्षपात तो साफ नजर आता है. आठ जिलों में औरंगाबाद-जालना जिलों के हिस्से
में काफी कुछ आया है. आमतौर पर जालना की तुलना में औरंगाबाद शेर होता है. लेकिन इस
बार जालना को सवाशेर बनाने का खेल हुआ है. बीड़ की पंकजा मुंडे को बड़ी चतुराई से
किनारे कर दिया गया है. अहमदनगर-परली-बीड़ तथा वर्धा-नांदेड रेल के लिए ५३२६ करोड़
रुपए का प्रावधान किया गया और वह भी वेंâद्र की अख्तियार की योजना के तहत.
देखने वाली बात यह कि मंत्रिमंडल बैठक के दौरान पंकजा मुंड़े तथा अर्जुन खोतकर को
बाहर प्रतिनिधिमंडल की विज्ञप्तियां समेट ने बिठा दिया गया था, कायदे
से दोनो मंत्री मंत्रिमंडल की बैठक में मराठवाड़ा के मसलों पर चर्चा करने के लिए
भीतर होने चाहिए थे. परभणी के टेक्सटाईल पार्क की
घोषणा इसके पहले ही हो चुकी है. भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रावसाहब दानवे को ‘सीड
हब’ के साथ-साथ इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्सटाईल मिला. इससे दानवे की तो चांदी
हो जाएगी. कायदे से यह संस्था औरंगाबाद के हिस्से आती, तो इसका बेहतर
ढंग से परिचालन होता. वैसे अब तक के पैकेजों का हश्र देखते हुए मराठवाड़ा के
जनसाधारण को पचास हजार की उड़ान से कुछ हासिल होने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
लेकिन शिक्षकों पर पड़े डंडे और छोड़े गए आंसू गैस से इतना तो संकेत मिलता है कि
मराठवाड़ा तू उड़... पर प्यारे इतना न उड़. तेरे पंखों में रहने नहीं देंगे हम इतना
दम.